करूं कैसे नमन उनको
समझ में कुछ नही आता
रुकी है लेखनी मेरी
झुका है शर्म से माथा
असर होगा कलम पेर ज्यों
शहीदों की दुवाओ का
गरम ज्वालामुखी त्यों ही
फतेगा भावनाओं ka
तपिश शब्दों में आयेगी
नमी शोलों में बदलेगी
शुलागती पंक्ति गीतों की
धधकती आग उगलेगी
तापेगा आग में जो भी
खरा वह स्वर्ण होगा फिर
नही भारत में भारत से
अलग कुछ वर्ण होगा फिर
मुकुट बनेकेर भारत
विश्वा के माथे पेर जब होगा
नमन सच्चा शहीदों को
सही माय्नें में तब होगा
Sunday, July 22, 2007
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