सिसक रही बूढ़ी स्वतंत्रता
मानव अब लाचार हो गया,
धू धू ज्वाला धधक रही है
कर्मठ अब बेज़ार हो गया |
चंदन के जीतने उपवन थे
सब विषधेर के नाम हो गये,
द्रोपदिया अशहाय शभा में
धन के श्याम गुलाम हो गये |
छल प्रपंच अन्याय अनिस्ता
जीवन का आधार हो गया
सिसक रही बूढ़ी स्वतंत्रता
मानव अब लाचार हो गया |
Tuesday, August 12, 2008
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