पौध का अकेला तिनका मै
आज पछता रहा हूँ
क्यों बने मेरे भाग उस
तेज अंधियार का
जिसने
तबाह कर दिया है
गरीबों की बस्ती
विवश किया है उनको
जिंदगी से हरदम जूझने को
इस समाज में
और
अंत में हार जाने को
पर इन्ही के हाथों
बनी ऊँची इमारतें हंस रही है
उन पर आज
इन्ही की हालत पर
खिलखिला रही है इनके उजड़े घरों पर
पौध का मै अकेला तिनका
आज यह सब देख कर
पछता रहा हूँ
क्यों बना मै इक
भाग उस अंधियार का
Saturday, May 29, 2010
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